अभिनंदन ग्रंथ - (हिंदी लेख)-श्री. यशवन्तराव चव्हाण नेतृत्वपर एक दृष्टि

श्री. यशवन्तराव चव्हाण नेतृत्वपर एक दृष्टि

रामगोपाल माहेश्वरी

यह एक मान्य बात है कि श्री यशवंतराव चव्हान का स्थान देश के नेतृत्व की द्वितीय पंक्ति के उभरते नक्षत्रो में है । काँग्रेस दल में उनकी बढती लोकप्रियता का प्रमाण भावनगर काँग्रेस में उन्हे प्राप्त मत है और काँग्रेस के बाहर के लोकमत की दृष्टि से भी वे उतने ही गुणों (marks) के अधिकारी है, जो पिछले महीनों हैद्राबाद में श्री जयप्रकाश नारायण द्वारा व्यक्त अभिमत से स्पष्ट होता है ।

श्री चव्हान के नेतृत्व की प्रशंसा राष्ट्रनेता पं. जवाहरलालजी ने अनेक प्रसंगो पर की है । श्री चव्हान के कुछ आलोचक यह प्रशंसा नैमित्तिक समझते है, विशेषत: बम्बई राज्य के नाम से ख्यातिप्राप्त एक बडे राज्य के उनके नायकत्व के कारण, परन्तु यह धारणा उचित नहीं है । श्री चव्हान ने वास्तव में देश के उच्च नेतृत्व व देश के सर्वसामान्य सुपठित जन-समूह का ध्यान अपने प्रति आकर्षिक किया है । यह बात एक उल्टे ( negative) इस माप दण्ड से भी सिद्ध होती है कि सार्वदेशिक दृष्टि से उनकी आलोचना न्यूनतम हुई है । राज्य की अपनी बात लें, तो भूतपूर्व बम्बई राज्य अथवा वर्तमान महाराष्ट्र राज्य में विरोधी पक्ष प्रबल एवं कटू टीकाकार होते हुये मी, उनका व्यक्तित्व न्यूनतम टीका का विषय बना है । राज्य विधान सभा में विरोधी पक्ष के आक्रमणों को उन्होने प्राय: स्थिर व शान्त भावसे ग्रहण किया है और प्रभावोत्पादक ढंग के प्रत्युत्तर द्वारा उन्होने विरोधियो के तीखे प्रहारों को असफल सिद्ध किया है ।

श्री चव्हन के हाथो जिन परिस्थितियो में भूतपूर्व बम्बई राज्य का नेतृत्व, श्री मुरारजी देसाई के केन्द्र में पदार्पण के बाद आया, वह सहज नही था । एक विशाल व प्रगतिशील राज्य की बागडोर सम्हालना, जिसका केन्द्र बम्बई के समान भारत का स्नायु-संचालन स्थान हो और जहां विचित्र दिशाओं में रस्सा-खीच का खेल निरन्तर चलता हो, कठिनतर बोझ था; परन्तु श्री चव्हान को इस बात का श्रेय प्राप्त है कि न तो उन्होने श्री मुरारजी भाई के अभआव को मासित होने दिया और न परिस्थितियो को बेतौल उभरने दिया, बल्कि यदि यह कहा जाय कि महाराष्ट्र की ऊबड-खाबड राजनीति का कुशलतापूर्वक शमन कर उन्होने परिस्थितियों को सही दिशा में मुडने या मोडने को प्रेरित किया, तो अत्युक्ति न होगी । यह बात, स्वयं में नगण्य सफलता नहीं है ।

द्विभाषी बम्बई राज्य के विघटना को लेकर मी कुछ लोग श्री चव्हान के नेतृत्व पर आक्षेप करतै है । उनका आक्षेप यहां तर आगे बढ जाता है कि उन्होनें 'भीतर घुसकर' संयुक्त महाराष्ट्र का निर्माण कर लिया । परन्तु यह उक्ति उनके प्रति न्याय नहीं है । यह सही है कि श्री चव्हान के नेतृत्व-काल में द्विभाषी बम्बई राज्य टूटा, जिस पर देश की भावनागत एकता का उत्तरदायित्व डाला गया था । परन्तु, इस सबन्ध में मूलभूत सत्य यह है कि द्विभाषी राज्य का निर्माण स्वयं में दूरदर्शिता-पूर्ण नहीं था । उन परिस्थितियों के बीच, जहां भाषा के आधार पर नये राज्य आकार ग्रहण कर रहे हो, केवल बम्बई नगर के व्यापक महत्त्व या स्वरुप को लेकर दो बडे जनसमूह महाराष्ट्रीय एवं गुजरातियों को द्विभाषी गठबन्धन में कायम रखना, देश की नयी पार्श्वभूमि की उपेक्षा थी और यदि श्री चव्हान ने, उनके अपने शब्दो में पूर्ण प्रामाणिक प्रयत्न के बावजूद द्विभाषी का शकट सकलतापूर्वक खींचना असंभव अनुभव किया हो, तो उन्हे इसके लिये दोष नहीं दिया जा सकता । उन्होने अनुभव के पश्चात् यदि दूसरा विकल्प अधिक व्यावहारिक, प्रयोजनीय व अनिवार्य समझा हो, तो सक्रिय व सृजनशील नेतृत्व की दृष्टि से वे योग्य सहानुभूति के पात्र है ।

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