यशवंतरावजी चव्हाण व्यक्ति और कार्य -२२

यशवंतराव की गिरफ्तारी भी विचित्र ढंग से हुई । वे भूमिगत रह कर सातारा जिलेके भूमिगतोंका सूत्र-संचालन पूना से करते थे । एक बार उन्हें अपने भूमिगत मित्रों से पता लगा कि उनकी पत्‍नी सुश्री वेणुताई सख्त बीमार है । वैसे तो जब से सरकारने उन्हें गिरफ्तार कर स्थानबद्ध कर रखा था तब से उन्हें फिट्स आनी शुरू होगई थी और उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता था । मानसिक, आर्थिक और राजनैतिक विषमता ने उन्हें सख्त बीमारी में पटक दिया । बचने की कोई उम्मिद न थी । यशवंतराव इस घटना से चिंतित हो उठे । सुश्री वेणुताई को वे अपनी उन्नति और उत्कर्ष की नींव का पत्थर मानते हैं । उनकी दृष्टिमें वह सच्चे अर्थ में गृहरानी है । जब से सुश्री वेणुताई का चव्हाण-परिवार में पदार्पण हुआ तभी से उन्नति के द्वार खुल गये । यशवंतराव के मित्र सुश्री वेणुताई को उनकी भाग्यलक्ष्मी मानते हैं और स्वयं चरित्र-नायक भी उन्हें बहुत चाहते हैं । अतः अपनी प्रिया की बीमारी सुनकर उनका विचलित होना स्वाभाविक था । उन्होंने सुश्री वेणुताई के पास गुप्‍त रूपसे फलटण जाने का निश्चय किया । तदनुसार वे फलटण गये और बीमार पत्‍नी से भेंट की । सुश्री वेणुताई को सांत्वन मिला । उनमें जीने की इच्छा तीव्र हो उठी । यशवंतराव भी अस्वस्थ पत्‍नी की सेवा-शुश्रूषा में तन, मन से लग गये । लेकिन विधि की लीला अपरंपार है । उसे न कभी किसीने पहचाना है और न कोई पहचान सकेगा । यशवंतराव की फलटण में उपस्थिति की खबर न जाने कैसे पुलिस को लग गई । पुलिसने छापा मार कर २१ अप्रेल १९४४ को उन्हें फलटण में गिरफ्तार किया ।

क्रांतिवीर नाना पाटील के लिए यशवंतराव के मन में असीम श्रध्दा और आदर की भावना थी । लेकिन उनके नामपर जो घोटालें शुरू हुए उससे उन्हें दिली नफरत थी । फलतः दोनों में मतभेद होगये । वैसे भी यशवंतराव को झूठी शानोशौकत और ढकोसलोंसे नफरत है । वे ध्येयनिष्ठ प्रामाणिक कार्यकर्ता को हृदय से चाहते हैं । राजनीति के गन्दे खेल में भी हर कार्यकर्ता को कीचडमें रहे कमल की तरह पवित्र रहना चाहिए - ऐसा उनका दृष्टिकोण है । जबकि नाना पाटील दबावमूलक राजनीति का अवलम्बन कर अपना काम निकालना आद्यकर्तव्य समझते थे । सन् १९४६ में जब यशवंतराव बम्बई राज्यीय मंत्रीमण्डल में उपगृहमंत्री पद थे तब सातारा जिले के भूमिगत कार्यकर्ताओं के सम्मानमें जगह जगह पर सत्कार समारोह आयोजित किये गये थे । एकाध दो प्रसंग पर यशवंतराव भी उपस्थित थे । वहाँ पर उन्होंने विचित्र दृश्य देखा । भूमिगत आन्दोलन की सफलता का सारा श्रेय नाना पाटील और उनका कुंडल गुट लेने पर तुला हुआ था । आगे चल कर इस गुटने जिला लोकल बोर्ड की अध्यक्षता के लिए अपनी पसंदगी का उम्मिदवार खडा किया और काँग्रेस सदस्योंको इसका समर्थन करने का आदेश दिया । यशवंतराव इस परिस्थिति से सजग थे । काँग्रेस संगठन और जिला बोर्ड के काँग्रेसी सदस्योंकी निर्भीक वृत्तिसे वे पूर्णतया परिचित थे । वे भली-भाँति जानते थे कि एक भी कार्यकर्ता दबावमूलक राजनीति का भोग कभी नहीं बनेगा । फिर भी उन्होंने उन्हें निर्भय बनाना उचित समझा और जिला बोर्ड के सदस्यों को अपने मन पसंद उम्मिदवार को अध्यक्ष पद के लिए मत देने का स्पष्ट आदेश दिया । क्रांतिवीर नाना पाटील की अपनी आंशिक भूल के कारण राजनैतिक अखाडे में यह सबसे पहली सख्त पराजय थी । तब से हमेशा के लिए दबावमूलक राजनीति पर नियंत्रण आ गया ।

विदेशी सरकार के विरुद्ध भूमिगत-संगठन ने जिस आतंकवादी नीति का अनुशरण किया था वही नीति जनतंत्रीय सरकार शासनारूढ होने पर भी आगे जारी रखना कहाँ तक उचित है - यह एक जटिल समस्या थी । यशवंतराव इस प्रकार की नीति के बिलकुल खिलाफ थे । उनकी दृष्टि से भूमिगतों को अब भी वास्तविक परिस्थिति का पूरा आकलन नहीं हुआ है - अतः उन्हें सही मार्ग सुझाना चाहिए ऐसा प्रयत्‍न था । दूसरे लोगों की भाँति भूमिगतों के बारे में यशवंतराव के मन में पूर्वग्रह या दूषित भाव न था । बल्कि स्वतंत्रता आन्दोलनमें अगर किसीने सबसे बडा त्याग किया है तो वह केवल भूमिगत कार्यकर्ताओं ने ऐसी उनकी दृढ मान्यता थी । अतः भूमिगत कार्यकर्ताओं का अजेय गढ सातारा जिला काँग्रेस में है या नहीं ? जब यह चर्चा चल पडी; तब महाराष्ट्र प्रदेश काँग्रेस समिति की बेलापुर-बैठक में यशवंतराव ने बडे ही प्रभावशाली ढंग से भूमिगत आन्दोलन का समर्थन करते हुए कहा था : ''सातारा जिला काँग्रेस में है या नहीं - यह बात तो मुझे पता नहीं । लेकिन आज अगर कहीं काँग्रेस है तो वह केवल सातारा जिले में ही है ।''

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